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EXPECTED/MODEL QUESTIONS AND ANSWERS FOR RRB/SSC/PSC PRE/VYAPAM / TET AND NTPC

यमुना - गिरीटोंसपब्बरआंध्रा
'NATO' नाटो की स्थापना कब की गई---- 1949
इसमें एक लेन 5 मीटर की और दूसरी लेन 20 मीटर की होती है। 5 मीटर की लेन को रिकवरी लेन और 20 मीटर की लेन को शटल रन लेन कहा जाता है। शटल रन लेन के दोनों तरफ दो दो कोन रख दिए जाते हैं। सबसे पहले खिलाड़ी रिकवरी लेन में चल कर आता है और शटल रन लेन की लाइन के पीछे पैर रखकर तैयार होता है। मशीन द्वारा बीप बजने पर वह दौड़ना प्रारम्भ करता है और दूसरी बीप बजने से पूर्व उसे दूसरे छोर पर पहुँच कर वापस लौटना होता है। अब तीसरी बीप बजने तक उसे शटल रन लेन के पहले वाले छोर तक पहुँचना होता है। अब वह चलकर रिकवरी लेन पार करता है और दूसरे राउंड के लिए तैयार होता है। एक राउंड पूरा करने को एक शटल कहा जाता है। 1 शटल पूरा करने के बाद खिलाड़ी को दूसरे शटल से पूर्व 10 सेकंड का समय दिया जाता है। हिमाचल की पर्वत शृंखलाएँ व चोटियाँ:- समुद्रतल से हिमाचल प्रदेश की ऊँचाई 350 मीटर से 7000 मीटर की बीच है |

मुग़ल साम्राज्य के अंतर्गत मनसबदारी प्रणाली की औपचारिक रूप से शुरुवात मुग़ल सम्राट अकबर नें की थी. उसने इस प्रणाली को मुग़ल साम्राज्य की मजबूती का मूल आधार बनाया. मुग़ल साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत मनसबदार का सीधा अर्थ एक रैंक या एक पद से लगाया जाता था. लेकिन मुग़ल प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत यह किसी मनसबदार के पद या उसके मुग़ल प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत उसके ओहदे को इंगित करता था. मनसबदारी प्रणाली वस्तुतः एशियाई उत्पत्ति से सम्बन्ध रखती थी लेकिन भारत में उत्तरी क्षेत्र में इसे सर्वप्रथम लागू करने का श्रेय बाबर को जाता है. लेकिन यह मुग़ल सम्राट अकबर था जिसने इस व्यवस्था संस्थागत तौर पर मुग़ल प्रशासनिक व्यवस्था के नागरिक और सैन्य विभाग दोनों क्षेत्रो में लागू किया.
मनसबदारी प्रणाली ने शाही संरचना में विभिन्न अनुभागों का गठन किया था. ये मनसबदार मुग़ल साम्राज्य के न केवल दृढ स्तम्भ कहे जाते थे बल्कि मुग़ल प्रणाली की मजबूत आधारशिला का निर्माण भी करते थे. इस प्रणाली के अंतर्गत यदि कोई अमीर सिर्फ मनसब ग्रहण करता था तो उसे कोई महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं होता था लेकीन जैसे ही उसे किसी जागीर का स्वामी बना दिया जाता था तो उसे उस जागीर से भूमिकर कर प्राप्त करने का अधिकार मिल जाता था. इस प्रणाली के अंतर्गत यदि किसी को जागीर का अधिकार दिया जाता था तो इसका यह अर्थ नहीं कोई वह उस जागीर के सन्दर्भ में पूरी तरह से निरंकुश जो जाये बल्कि वह सम्राट के प्रत्यक्ष नियंत्रण में रहता था. इस व्यवस्थ में जागीर प्राप्त अमीर को उसकी सेवा के बदले में जागीर दी जाती थी(केवल भूमि ही नहीं)जो उसका वेतन होता था.
जैसा कि उपर्युक्त प्रणाली से यह मालूम हुआ की प्रत्येक मनसबदार को उसकी सेवा के बदले में कुछ भूमि जागीर के रूप में प्रदान की जाती थी जो उसके वेतन के रूप में भी होता था. इस जागीर से मनसबदार सभी प्रकार के कर के अलावा अन्य कर भी वसूल करने का अधिकारी होता था जोकी सम्राट के द्वारा उसे प्रदान किये गए अधिकार को दर्शाता था. ध्यातव्य है की उस जागीर से प्राप्त कर की राशि में से मनसबदार के वेतन को काट लिया जाता था उसके बाद बची हुई शेष राशि को मनसबदार को मुग़ल खजाने में जमा करना पड़ता था. मनसबदार को उस जागीर से प्राप्त राशि से ही अपने घुड़सवार सेना को भी बनाये रखना पड़ता था. मनसबदार अपने घुड़सवारों को नकदी और जागीर के रूप में भी वेतन देता था. नकदी प्राप्त करने वाले घुड़सवार को नकदी घुड़सवार और जागीर प्राप्त करने वाले घुड़सवार को जागीरदार घुड़सवार कहते थे. इस प्रकार अकबर के अधीन मनसबदारी  प्रणाली कृषि और जागीरदारी प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा बन गया. जैसा की इसके संस्थागत रूप से पता चलता है की जब भी जरुरत पड़ती थी तो किसी भी मनसबदार को नागरिक प्रशासन से सैन्य विभाग और सैन्य विभाग से नागरिक प्रशासन के अंतर्गत स्थानांतरित कर दिया जाता था.
इस व्यवस्था के अंतर्गत दोहरे रैंक का प्रावधान किया गया था. इसे दोहरी प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा नामित किया गया था  जिसके अंतर्गत व्यक्तिगत रैंक को जात और घुड़सवार रैंक को सवार कहा जाता था. प्रत्येक मनसबदार इन दोनों पदों जात और सवार से सम्मानित किया जाता था. मनसबदार को उसके प्रत्येक घोड़े के लिए दो रुपये का भुगतान किया जाता था. कालांतर में ये मनसबदार यदि पांच हजार घुड़सवार सेना का प्रतिनिधित्व करते थे तो उन्हें अलग से एक हजार रूपये का भत्ता भुगतान किया जाता था. इसके अलावा ए मनसबदार ऐसा नहीं था कि अपने पद के मुताबिक कार्य करते थे. साथ ही यदि कोई मनसबदार सबसे बड़ा मनसब ग्रहण किये हुए है तो इसका यह तात्पर्य नहीं था की उसका पद भी उतना ही बड़ा हो. उदाहरण के लिए  राजा मान सिंह यद्यपि सबसे बड़ा मनसब ग्रहण किये हुए थे लेकिन अबू फज़ल की तुलना में उन्हें सम्राट के दरबार में कोई मह्त्वपूर्ण पद आबंटित नहीं किया गया था जबकि अबू फज़ल अकबर के दरबार में ना केवल एक महत्वपूर्ण मंत्री पद धारण करते थे बल्कि नवरत्नों की सूची में भी शामिल थे. इस व्यवथा के अंतर्गत मुग़ल सम्राट सर्वेसर्वा था जोकि किसी भी मनसबदार के पद में घटोत्तरी और बढ़ोत्तरी कर सकता था. मुग़ल सम्राट इसके अलावा किसी भी मनसबदार को उसकी बहदुरी पूर्ण सैन्य सेवा के एवज में सम्मानित भी करता था. इसके अलावा मुग़ल अधिकारी सैन्य सेवा के बदले में विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्र भी प्राप्त करते थे. मनसबदारो के अंतर्गत एक निश्चित संख्या में सैनिक बलमहिलापुरुषघोड़ेहाथी और विविध पशु शामिल रहते थे जोकि मनसबदार के साथ उसके साथ किसी अभियान में शामिल रहते थे. मनसबदारो को उनके जात पद के अनुसार 10,20,100 और 1000 का मनसबदार कहा जाता था.
मोटे तौर पर मनसबदारों की तीन श्रेणियां निर्धारित की गयी थीं. वे मनसबदार जिन्हें 500 जात के नीचे का पद मिला था उन्हें सिर्फ मनसबदार कहा जाता था. वे मनसबदार जोकि 500 से ऊपर लेकिन 2500 से नीचे जात पद धारण करते थे उन्हें अमीर की श्रेणी में शामिल किया जाता था और वे द्वितीय श्रेणी से सम्बंधित किये जाते थे. इनके अतिरिक्त वे मनसबदार जोकि 2500 जात या उससे ऊपर का जात पद धारण करते थे उन्हें अमीर-ए-उम्दा या अमीर-ए-आज़म या उमरा कहते थे. ये मुग़ल शासन प्रणाली में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखते थे. मुग़ल साम्राज्य के मनसबदारी व्यवस्था के अंतर्गत सबसे छोटे मनसबदार को 10 जात का मनसब दिया जाता था. इन मनसबदारों में मानसिंह को 7000 जात का मनसब मिला हुआ था जबकि भगवान् दास को 5000 जात का मनसब. वे दोनों साम्राज्य की शासन व्यवस्था और मनसबदारी प्रणाली के अनतर्गत अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किये हुए थे.
मनसबदारी प्रणाली के अंतर्गत अकबर से लेकर औरंगजेब तक लगातार परिवर्तन होते रहे. अकबर के शासन काल में इन मनसबदारो की संख्या करीब 1800 के आस-पास थी लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या में परिवर्तन होता चला गया और औरंगज़ेब की समय इनकी संख्या में काफी इज़ाफा हुआ और यह 14500 के आस-पास मिलने लगी. मनसबदारी प्रणाली के अंतर्गत यह एक विशेषता थी की यह आनुवंशिक नहीं होती थी. अर्थात इसे हस्तानातरित भी किया जाता था. इसे त्यागने वाला व्यक्ति अपने नामिनी को नहीं दे सकता था. इसके अलावा इस प्रणाली में यदि कोई मनसबदार अपने कार्यकाल के दौरान मर जाता था तो एक तरफ तो उसके मनसब को हस्तगित कर लिया जाता था और उसके सभी बकायों को भी उसके वेतन में से काट लिया जाता था और शेष राशि को उसके उत्तराधिकारी को वापस कर दिया जाता था. इस व्यवस्था को मुग़ल साम्राज्य के अंतर्गत जब्ती व्यवस्था कहा गया.